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4/1/20

Part 3 - इतिहास के पन्नो में पढ़ा था

Day 7 lockdown : Poem in Solidarity with  Courage and sufferings of Migrants and
to Salute front line health and Safai workers, Ngos, Volunteers who are helping to feed poor and The exceptional Proactive Govt officers who are helping the vulnerable people.
youtube link https://youtu.be/X_BojuAUjvQ

Thanks to डॉ.सुनील अभिमान अवचार for giving permission to use sketches by him. His sketches give power to my words.

इतिहास के पन्नो में पढ़ा था 
की हुआ था देश का बटवारा आज़ादी के वक़्त 
धर्म के आधार पर लोगो को मजबूर कर दिया था चुनने अपने देश 
और निकल पड़े थे  पैदल कंधो पे घर बटोरे हुए कई किलोमिटर्स की यात्रा पर.
वो एक मानवीय प्रवास का दुःखभरा दौर था,
और आज, जो मेरे तुम्हारे आँखों के सामने  
साकार हो रहा है फिर से एक मानवीय प्रवास. बेहद दर्द भरा.
हवाई जहाज से आई हुयी महामारी ने  शुरुवात की,
और साथ दिया गरिबी, पेट की भूख और मौत के डर ने
और इन मजदूरो के बारे में बिना सोचे घोषित हुए इमर्जन्सी लॉकडाउन ने.
लोग चल पड़े है शहरो से गावो की तरफ.
और सरकार इनको कोई साधन, छत, खाना, बसे कुछ भी सहारा  देने के बजाए
ढा रही है जुल्म.
 कही बनाये जा रहे है उनके लिए नए कारावास.
 कही डंडे, लाठिया से पिटाई ,
 तो कही केमिकल स्प्रे से हो रही उनकी धुलाई.

घर पहुँच जाने की आस लिए पैदल जाने वाले 
कुछ रास्ते में ही तोड़ रहे है दम.
और जो जिन्दा पहुचेंगे, क्या वे दाखिल हो पाएंगे  गाव के अन्दर ?
क्या गाव का दरवाजा खुलेगा उनके लिए ? 
पता नहीं.
कोरोना के अज्ञान से और डर से गाव के गाव हो गए है 
बंद.
दम तोड़ रहे है लोग भूख से, गरीबी से, अन्य कई बीमारियों से.
बटवारे का एक  वो इतिहास पढ़ के मै फुट फुट कर  रो पड़ी थी.
और आज फिर उसी तरह का ये  मानवीय प्रवास  देख कर 
दिल बैठ गया है.

घरो में सुरक्षित बैठे हुए लोग चिल्ला रहे है , 
“ये सब कुछ ठीक हो रहा है.”
इन बेवकुफो को इतनी भी अक्ल नहीं की’
जिन हालातो से मजदूर आज गुजर रहे है, 
कल वे भी हो सकते है उन्ही हालातो के शिकार.
आज जो भूख चला रही है इन मजदूरो कोशहर से गावो तरफ,

वोही भूख, कल इकोनोमी गिरने के बाद 
हो जाएगी आप पर भी हावी.
और तब आप भी भूख से बिलखोगे, चिल्लाओगे, 
तब आप को मरता हुए देख बैठे होंगे कुछ लोग आपके भी ऊपर,
जो बोलेंगे “ये सब कुछ ठीक हो रहा है.”
ये मै नहीं कह रही,
इतिहास गवाह है.

कोरोना... कितनी  तरह से तोड़ोगे इंसानियत को ?
ये तुम तोड़ रहे हो या हम ही ऐसे है खोकले अन्दर से.?

मेरा अभिवादन हर उस डॉक्टर , नर्स और अस्पताल के हर एक कर्मचारी को, 
फिल्ड पे कार्यरत आशा, ए.एन. एम नर्सेस 
और सफाई कर्मचारियो को 
जो दे रहे है सेवाये मानवता के बचाव के लिये,
खुद खतरे का सामना करते हुये.

मेरा अभिवादन उन सब मजदूरो को, 
जो नही डरे सत्ता की मनमानी से , 
नहीं है वो कायर आप जैसे, जो डरते है सत्ता को प्रश्न पूछने.
खुद पर निर्भर वो निकल पड़े यात्रा पर. 
मेरा अभिवादन उन तमाम , इंसानियत को जिन्दा रखने वाले लोगों को 
 जो खिला रहे खाना इन मजदूरो को, दे रहे है छत और साथ में  हौसला.

मेरा अभिवादन उन सरकारी अफसरों को, जिन्हें है समझ समाज के इस कमजोर हिस्से की 
और चल पड़े है मदद पहुचाने हर उस आखरी इन्सान तक.

काश हम सब ये बात समझ पाए..
काश हम सब फिर से इन्सान बन जाए !!

Ayshwarya

visit youtube channel - Ayshwarya Revadkar for audio visual of this poem.

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